बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र
अध्याय - 12
बचत तथा निवेश साम्य
(Saving and Investment Equilibrium)
आय तथा रोजगार के सिद्धान्त में बचत तथा निवेश का आपसी सम्बन्ध काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बचत के निवेश से अधिक होने पर आर्थिक क्रियाओं में संकुचन आने लगता है जो अन्ततः मंदी तथा बेरोजगारी में परणित हो जाता है और निवेश के बचत से अधिक हो जाने पर आर्थिक क्रियाओं का विस्तार होते-होते अन्ततः अभिवृद्धि तथा कीमत स्फीति की दशा उत्पन्न हो जाती है। बचत आय की व्यय पर अधिकता होती है जिसे समीकरण S = y - c से दर्शाया जाता है। स्पष्टतः बचत में वृद्धि या तो उपभोग में कमी करके अथवा आय व उत्पादन में वृद्धि करके प्राप्त की जा सकती है। वस्तुतः किसी भी समाज की बचत की मात्रा दो तत्वों पर आधारित होती है - (1) प्राप्त होने वाली आय की मात्रा तथा (2) बचत करने की प्रवृत्ति। आय जितनी अधिक होती है बचत की मात्रा भी उतनी ही अधिक होती है क्योंकि आय वृद्धि के साथ-साथ उपभोग की सीमान्त प्रवृत्ति घटने लगती है। इसी प्रकार बचत की प्रवृत्ति के ऊँचा होने पर व्यय कम किया जाता है और परिणामस्वरूप बचतें होने लगती हैं। नियोजित बचत तथा नियोजित निवेश के बीच समानता स्थापित करने के लिए कीन्स ने राजकोषीय नीति का समर्थन किया है। यदि निजी निवेश अपर्याप्त हैं तथा उनके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में गिरावट की प्रवृत्ति विद्यमान हो गयी है तो सरकार को चाहिए कि वह सार्वजनिक निर्माण कार्यों पर अपना व्यय बढ़ाकर निवेश की न्यूनता को पाट दे के तथा अर्थव्यवस्था में संकुचन की प्रवृत्ति को दूर करें। परन्तु यदि पूर्ण रोजगार की अवस्था के बाद भी निजी निवेश की मात्रा अधिक रहती है तो सरकार को चाहिए कि करारोपण में वृद्धि करके तथा सार्वजनिक व्यय की मात्रा को घटा करके अर्थव्यवस्था की कीमत स्फीति की प्रवृत्ति से छुटकारा दिलाये। इस प्रकार राजकोषीय नीति के पीछे आधारभूत सिद्धान्त पूर्ण रोजगार के स्तर पर बचत तथा निवेश के बीच समानता को बनाये रखना है।
बचत तथा विनियोग समानता के बारे में केंज के दो विचार हैं। पहला यह कि बचत तथा निवेश के बीच लेखांकन अथवा पारिभाषिक समानता जिसे राष्ट्रीय आय के लेखांकन के लिए काम में लाया जाता है। इससे हमें यह पता चलता है कि सब समयों में और आपके किसी भी स्तर पर वास्तविक बचत तथा वास्तविक निवेश हमेशा समान होते हैं। कीन्स का दूसरा विचार फलनात्मक समानता के सम्बन्ध में है। इस रूप में बचत तथा निवेश केवल आय के संतुलन स्तर पर समान होते हैं। स्पष्टतः फलनात्मक दृष्टि से बचत तथा निवेश केवल बराबर ही नहीं बल्कि वे संतुलन में भी होते हैं।
विनियोग प्रत्येक व्यक्ति के लिए लाभकारी होता है। अधिक विनियोग होने पर व्यक्ति भविष्य में कोई भी कार्य कर सकता है। अर्थव्यवस्था में संतुलन के लिए यह आवश्यक है कि उपभोग करने से बची हुई आय का विनियोग किया जाये। राष्ट्रीय आय संतुलन स्तर पर बचत व विनियोग का समान होना आवश्यक होता है। इस प्रकार बचत तथा विनियोग एक-दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध रखते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य
- कीन्स के अनुसार पूँजी निर्माण बचत की प्रवृत्ति पर निर्भर करती है।
- पूँजी की सीमान्त क्षमता को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्त्व, अनुमानित माँग, उपभोग की प्रवृत्ति आय आदि से है।
- पूँजी की सीमान्त क्षमता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक राजनीतिक स्थिरता, जनसंख्या वृद्धि, तकनीक परिवर्तन है।
- पूँजी निर्माण को प्रभावित करने वाले कारकों में बचत करने की सुविधा, बचत करने की इच्छा, बचत करने की शक्ति है।
- देश में किये जाने वाले सभी वास्तविक निवेश सकल निवेश कहलाते हैं।
- स्वायत्त निवेश का सम्बन्ध स्वायत्त से नहीं है।
- एकल निवेश से मूल्य ह्रास तथा अप्रगलन व्यय को हटाने के बाद जो शेष बचता है शुद्ध निवेश कहलाता है।
- MFC को सबसे अधिक माँग पक्ष प्रभावित करता है।
- दीर्घकालीन प्रत्याशाओं को प्राकृतिक प्रकोप, बाजार प्रतियोगिता तथा बाजार असन्तुलन प्रभावित करता है।
- कीन्स MEC तथा निवेश की उत्पादकता में ठीक अन्तर नहीं कर पाये।
- वाणिज्यिक उधारी भारत के दीर्घकालीन निवेश ऋण का सबसे बड़ा अंश है।
- MEC की धारणा का प्रतिपादन फिशर ने किया है।
- आय और रोजगार के सिद्धान्त में बचत और निवेश का आपसी सम्बन्ध महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- बचत आय का वह भाग है जिसे उपभोग पर व्यय नहीं किया जाता है।
- कीन्स का मत है कि "बचत एक निश्चित समय की आय में से उसी काल में होने का व्यय का अन्तर है।"
- किसी समाज की बचत की मात्रा दो तत्वों पर आधारित है पहला प्राप्त होने वाली आय की मात्रा तथा दूसरा बचत करने की प्रवृत्ति।
- आय जितनी अधिक होती है बचत की मात्रा भी उतनी ही अधिक होती है क्योंकि आय वृद्धि के साथ-साथ उपभोग की सीमान्त प्रवृत्ति घटने लगती है।
- क्लासिकल अर्थशास्त्रियों के अनुसार बचत एवं विनियोग सदैव बराबर रहते हैं और यह, समानता ब्याज दर के माध्यम से आती है।
- क्लासिकल अर्थशास्त्रियों के अनुसार बचत एवं विनियोग सदैव बराबर रहते हैं और यह समानता ब्याज दर के माध्यम से आती है।
- क्लासिकल अर्थशास्त्रियों के विपरीत कीन्स का मत है कि बचत एवं विनियोग की समस्या साम्य की आधारभूत शर्त है।
- कीन्स के अनुसार बचत एवं विनियोग सदैव बराबर होते हैं और इन दोनों में समानता ब्याज की दर से नहीं अपितु आय के परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है।
- कीन्स ने कहा है कि " जबकि बचत की राशि व्यक्तिगत उपभोक्ताओं के सामूहिक व्यवहार का परिणाम है।"
- कीन्स से पूर्व के अर्थशास्त्रियों के अनुसार बचत एवं विनियोग केवल साम्य की स्थिति में ही बराबर हो सकते हैं।
- अर्थव्यवस्था अधिकांश समय असंतुलन की दशा में रहती है क्योंकि प्रत्याशित निवेश के बीच प्रायः असमानता बनी रहती है।
- नियोजित बचत के नियोजित निवेश से अधिक होने पर अर्थव्यवस्था में संकुचन की शक्तियाँ प्रभावी हो जायेंगी जिनके परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार, समग्र आय, उपभोग तथा निवेश में संकुचन आ जायेगा।
- वास्तविक बचत एवं वास्तविक निवेश के रूप में बचत और निवेश स्वतः एक समान रहते हैं परन्तु ऐसी केवल उस समय स्थिति होगी जबकि संतुलन की अवस्था अर्थव्यवस्था में होती है। नियोजित बचत और नियोजित निवेश के बीच समानता स्थापित करने के लिए कीन्स ने राजकोषीय नीति का समर्थन किया है।
- कीन्स के अनुसार—"विनियोग से हमारा आशय एक अवधि के अन्दर होने वाली उत्पादक क्रियाओं के फलस्वरूप पूँजीगत वस्तुओं के मूल्य में होने वाली वृद्धि से है।"
- ड्यूजनवरी का सम्बन्ध रैचट प्रभाव से है।
- उपभोग के सम्बन्ध में प्रदर्शन प्रभाव ड्यूजनवरी ने दिया।
- रोबिन्सन के अनुसार — "पूँजी निवेश से तात्पर्य है कि पूँजी में वृद्धि यह तब होती है जबकि कोई नया मकान बनाया जाये अथवा कोई नयी फैक्टरी लगायी जाये। निवेश का अर्थ है वस्तुओं का वर्तमान स्ट्रॉक में वृद्धि करना।"
- स्वायत्त निवेश आय स्तर से प्रभावित नहीं होता है।
- स्वायत्त निवेश, आविष्कार, जनसंख्या, कानूनी संस्थायें आदि पर निर्भर करता है।
- कीन्स के अनुसार बचत निवेश समानता अपूर्ण रोजगार स्तर पर पायी जाती है।
- यथार्थ परिणाम अभीष्ट, पूर्वानुभासित, योजनाबद्ध होता है।
- भारत में यथार्थ बचत तथा यथार्थ निवेश सदैव बराबर होते हैं।
- बचत आय की व्यय पर अधिकता है कथन सत्य है।
- जनरल थ्योरी इम्प्लायमेंट इन्टरेस्ट आय का लेखक कीन्स हैं।
- जनरल थ्योरी का प्रकाशन 1936 में हुआ।
- कीन्स के अनुसार "बचत एक निश्चित समय की आय में से उसी काल में होने वाली व्यय का अन्तर है।"
- बचत आय का वह भाग है जिसे उपभोग पर व्यय नहीं किया जाता है।
- अर्थव्यवस्था में संतुलन के लिए यह आवश्यक है कि उपभोग करने से बची हुई आय को विनियोग किया जाए।
- कीन्स के अनुसार उपभोग पर किये गए व्यय से बची हुई आय ही बचत है।
- कीन्स ने बचत एवं विनियोग से प्राप्त किये गए या वास्तविक रूप को स्पष्ट किया है।
- वास्तविक बचत एवं विनियोग वह होता है जिसे वास्तव में प्राप्त किया जा चुका है।
- कीन्स का मत है कि बचत तथा विनियोग अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा होने के बावजूद भी ये आपस में बराबर होते हैं।
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- अध्याय - 8 कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (Keynesian Theory of Employment)
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- अध्याय - 12 बचत तथा निवेश साम्य (Saving and Investment Equilibrium)
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